भारत में प्राचीन समय से ही जोंक थेरेपी से इलाज किया जाता रहा है. खून से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए उस जगह को जोंक से चुसवाया जाता है जिसे रक्तमोक्षण की विधि कहा जाता है.
भारत में प्राचीन समय से ही जोंक थेरेपी से इलाज किया जाता रहा है. खून से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए उस जगह को जोंक से चुसवाया जाता है जिसे रक्तमोक्षण की विधि कहा जाता है.
भारत में प्राचीन समय से ही जोंक थेरेपी से इलाज किया जाता रहा है. खून से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए उस जगह को जोंक से चुसवाया जाता है जिसे रक्तमोक्षण की विधि कहा जाता है. रक्तमोक्षण का अर्थ होता है रक्त को शरीर से मुक्त (बाहर) करना अर्थात जिस विधि के द्वारा शरीर से अशुद्ध रक्त को बहार निकाला जाता है वह क्रिया रक्तमोक्षण कहलाती है.आयुर्वेद आचार्य सुश्रुत के अनुसार जोंक विधि (Leech Therapy) का इस्तेमाल पित्त दुष्टि में किया जाता है. साधारण भाषा में अगर कहे तो जोंक थेरेपी का इस्तेमाल रक्त में उपस्थित अशुद्धियों को दूर करने के लिए किया जाता है. इस विधि में शरीर में स्थित खराब खून को जलोका (जोंक) के माध्यम से शरीर से बाहर निकलवाया जाता है.रक्त से जुड़ी जितनी भी बीमारियां हैं जैसे- कील-मुंहासे, एक्ज़िम, सोरायसिस, हर्पिस, एलोपेसिया (बालो का झड़ना या गंजापन) इत्यादि को लीच थेरेपी के जरिए दूर किया जा सकता है.
सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के खरगोन (मध्य प्रदेश) के चरक आयुर्वेद पंचकर्म के डॉक्टर संदीप राणे बताते हैं कि जोंक खून चूसने के दौरान आपके खून में हीरूडीन नामक रसायन को मिला देती है. यह रसायन जोंक की लार में पाया जाता है. हीरूडीन रक्त को जमने नहीं देता. इसके अलावा जोंक मरीज के शरीर में कई अन्य पेस्टीसाइड छोड़ती है, जो गैंगरीन से ग्रसित अंगों में ब्लड सर्कुलेशन शुरू कर देता है. यही नहीं इन रसायनों की वजह से घाव भी बहुत तेजी से भरता है.